'यह रिपोर्ट वापस लें वर्ना हम गंभीर टिप्पणियां करेंगे', गुजरात HC ने खारिज की वडोदरा बोट हादसे की जांच रिपोर्ट
रिपोर्ट का हवाला देते हुए बेंच ने यह भी नोट किया कि हालांकि कोटिया प्रोजेक्ट्स को तब अयोग्य घोषित कर दिया गया था जब वडोदरा नगर निगम ने पहली बार झील के किनारे को विकसित करने के लिए EOI आमंत्रित किया था
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गुजरात हाई कोर्ट ने इस साल वडोदरा में हुए हरनी नाव हादसे को लेकर राज्य सरकार द्वारा पेश जांच रिपोर्ट को खारिज करते हुए नए सिरे से जांच का आदेश दिया है। बुधवार को प्रस्तुत रिपोर्ट में एक पूर्व अधिकारी को क्लीन चीट देते हुए जिस झील के किनारे यह घटना हुई थी, उसके संचालन का ठेका अयोग्य फर्म को देने के उनके फैसले पर सवाल उठाया गया था। जिसके बाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि आप यह रिपोर्ट वापस लें वर्ना हम गंभीर टिप्पणियां करेंगे।
हाई कोर्ट ने हादसे के छह महीने बाद ऐसी रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने के लिए शहरी विकास और शहरी आवास विभाग के प्रधान सचिव (पीएस) की भी आलोचना की। बता दें कि इस दुर्घटना में कुल 14 लोगों की मौत हुई थी। यह हादसा 18 जनवरी को वडोदरा शहर के हरनी की मोटनाथ झील में हुआ था, जब एक नाव पलटने से 12 छात्रों और दो शिक्षकों की मौत हो गई थी।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ स्वतः संज्ञान लेते हुए घटना पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। रिपोर्ट पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि ठेकेदार परियोजना को हासिल करने के लिए योग्य नहीं था, यह रिपोर्ट वडोदरा के तत्कालीन नगर आयुक्त (MC) को बचाने की कोशिश करती है।
वडोदरा नगर निगम (VMC) ने झील के किनारे की परियोजना के रख-रखाव और संचालन का ठेका कोटिया प्रोजेक्ट्स नामक फर्म को दिया था, जिसके भागीदारों को बाद में इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था।
चीफ जस्टिस ने कहा, 'तत्कालीन आयुक्त ने उस ठेकेदार को वर्क ऑर्डर देने वाले आदेश पर खुद हस्ताक्षर किए थे, इसलिए वह एकमात्र व्यक्ति थे जिसने अनुमति दी थी। एक आम व्यक्ति भी देख सकता है कि ठेकेदार योग्य नहीं है। लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया। हम निष्पक्ष और उचित जांच चाहते हैं। इस रिपोर्ट को वापस लें और एक नई जांच करें।'
मुख्य न्यायाधीश ने ऐसी रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने के लिए शहरी विकास और शहरी आवास विभाग के प्रधान सचिव (PS) की भी जमकर आलोचना की। मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, 'PS यह नहीं कह सकते कि उन्हें (नगर आयुक्त) इस तरह से काम करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसका मतलब तो यह हुआ कि उनकी (MC) तरफ से कोई गलती नहीं हुई। नगर आयुक्त ने टेंडर को मंजूरी दी, फिर भी उनकी कोई गलती नहीं है? इस तरह की रिपोर्ट कोर्ट में पेश नहीं की जा सकती। आप या तो इस रिपोर्ट को वापस लें और नई रिपोर्ट दाखिल करें, अन्यथा हम बहुत गंभीर टिप्पणियां करेंगे।'
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ���े शुरू में रिपोर्ट का बचाव करने की कोशिश की, लेकिन बाद में उन्होंने भी स्वीकार करते हुए कहा कि 'शायद भाषा और बेहतर हो सकती थी'। रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने माना कि जिस ठेकेदार फर्म को रुचि की अभिव्यक्ति (EoIs) आमंत्रित करने के पहले प्रयास में ही खारिज कर दिया गया था, उसे दूसरे प्रयास में अनुबंध नहीं दिया जाना चाहिए था।
इसके बाद महाधिवक्ता ने कोर्ट के निर्देश से सहमति जताई और कहा कि राज्य सरकार नए सिरे से जांच करेगी और नई रिपोर्ट पेश करेगी। पीठ ने मामले पर आगे की सुनवाई के लिए 12 जुलाई की तारीख तय की है। 27 जून को पिछली सुनवाई के दौरान, जब रिपोर्ट अदालत में पेश की गई थी, तब पीठ ने कहा था कि रिपोर्ट ने तत्कालीन नगर आयुक्त (MC) को बचाने की कोशिश की, जिन्होंने कोटिया प्रोजेक्ट्स को मोटनाथ झील में नौका विहार सहित एक मनोरंजन सुविधा चलाने के लिए अपनी मंजूरी दी थी।
रिपोर्ट का हवाला देते हुए, पीठ ने यह भी नोट किया था कि हालांकि कोटिया प्रोजेक्ट्स को तब अयोग्य घोषित कर दिया गया था जब VMC ने पहली बार झील के किनारे को विकसित करने के लिए ईओआई आमंत्रित किया था, इसे अंततः दूसरे प्रयास में जब निविदाएं आमंत्रित की गईं तो अनुबंध प्रदान किया गया।
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