बिहार की रेशम नगरी के नाम से मशहूर भागलपुर का सियासी इतिहास वक्त-वक्त पर बदलता रहा है। 1977 से लेकर अब किसी एक दल का इस लोकसभा सीट पर प्रभुत्व नहीं रहा। 1952 में भागलपुर सीट अस्तित्व में आई। 1952 सबसे पहले कांग्रेस ने जीत का परचम फरहाया। अनूप लाल मेहता भागलपुर सीट से पहले सांसद बने। फिर 1957 से लेकर 1976 तक इस सीट पर कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा। पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा पांच बार इस सीट से सांसद चुने गए। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी रामजी सिंह ने कांग्रेस के किले को ध्वस्त किया था। लेकिन एक बार फिर से कांग्रेस ने वापसी की। और 1984 का चुनाव जीता, और फिर से भागवत झा ने जीत दर्ज की। लेकिन फिर 1989 में हुए भागलपुर दंगों के बाद इस सीट के सियासी समीकरण पूरी तरह बदल गए। और फिर दोबारा कांग्रेस की अब तक वापसी नहीं हो सकी है। 1989 से 1996 तक भागलपुर सीट पर जनता दल का कब्जा रहा। चुनचुन प्रसाद यादव एमपी चुन गए। 1998 में पहली बार बीजेपी ने भागलपुर सीट जीती। लेकिन 1999 के चुनाव में ये सीट कम्युनिस्ट पार्टी के सुबोध राय ने भाजपा से ये सीट छीन ली। एक बार फिर भाजपा ने वापसी की। 2004 से लेकर 2013 तक भाजपा के कब्जे में ये सीट रही। सुशील कुमार मोदी और शाहनवाज हुसैन सांसद रहे। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद आरजेडी ने बड़ा उलटफेर करते हुए भाजपा को मात दी। और शैलेश कुमार मंडल ने राजद को ये सीट जिताई। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की सहयोगी नीतीश की जेडीयू ने राजद से ये सीट छीन ली। 2019 में चुनाव में जदयू के अजय कुमार मंडल को 6,18,254 वोट मिले तो वहीं राजद प्रत्याशी और पूर्व सांसद शैलेश कुमार को 3,40,624 वोट मिले। जेडीयू ने भागलपुर सीट 2 लाख 77 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थी।और पढ़ें