आजमगढ़ सीट को समाजवादियों और यादव परिवार का गढ़ कहा जाता है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 2014 और 2019 में बीजेपी और मोदी की प्रचंड लहर में भी समाजवादी पार्टी यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब रही। 2014 में मुलायम सिंह यादव ने खुद यहां से चुनाव लड़ा था और 35.43 फीसदी वोट हासिल करते हुए जीत हासिल की थी, जबकि अगले चुनाव यानी 2019 में उनके बेटे अखिलेश ने 60 फीसदी वोट हासिल कर करीब तीन लाख वोटों के अंतर से बीजेपी उम्मीदवार को हराया था। 2022 में यूपी विधानसभा का चुनाव जीतने और नेता विपक्ष बनने के बाद अखिलेश ने ये सीट छोड़ दी और यहां हुए उपचुनाव में भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा लेकिन तीन साल में यहां की सियासी हवा बदल चुकी थी। अभिनेता से नेता बने दिनेश लाल यादव निरहुआ ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर करीब 8700 वोटों के अंतर से धर्मेंद्र यादव को हराते हुए इस सीट पर कब्जा जमा लिया। उप चुनाव में बीजेपी को 34.39 फीसदी वोट मिले, जबकि सपा को 33.44 फीसदी वोट मिले। इस सीट पर बीजेपी को दूसरी बार जीत मिली है। इससे पहले 2009 के चुनाव में रामाकंत यादव ने बीजेपी कैंडिडेट के तौर पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले वह सपा और बसपा के उम्मीदवार के तौर पर भी चार बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं। यह सीट यादव और मुस्लिम बहुल इलाका है। यही वजह है कि 1962 से यहां यादव या मुसलमान उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं। 19 लाख मतदाताओं में यहां यादवों, मुस्लिमों और दलितों की लगभग बराबर हिस्सेदारी है। तीनों की आबादी करीब तीन-तीन लाख है। यही इस सीट का जीत फैक्टर भी है।और पढ़ें