गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं संसदीय क्षेत्र छोटे सरकार और बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां आजादी के बाद सबसे पहले वर्ष 1952 में लोकसभा का चुनाव हुआ था। 1980 तक के करीब 28 वर्षों के सात बार के चुनाव में बदायूं जनपद के निवासी नेताओं को ही चुना। मगर वर्ष 1980 में कांग्रेस के टिकट पर मोहम्मद असरार अहमद सांसद चुने गए। बदायूं लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें गुन्नौर, बिसौली- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित, सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल है। 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाले बदायूं को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है। बदायूं में यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो भाजपा इस लोकसभा सीट पर आखिरी बार 1991 में चुनाव जीती थी। इसके बाद से लगातार सपा का कब्जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर वापसी की थी। 2019 से पहले भाजपा ने इस सीट पर विजय पाने के लिए पुरजोर कोशिश की थी लेकिन हर बार शिकस्त ही मिली। 2014 के चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा को करीब 32 फीसद वोट मिला था, जबकि सपा के धर्मेंद्र यादव को 48 फीसद वोट मिला था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 2014 की हार का सपा से बदला चुका लिया। संघमित्रा मौर्य भाजपा की सांसद बन गईं। संघमित्रा मौर्य पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य अपने विवादित बयानों के चलते पिछले दिनों खूब चर्चा में आए थे। विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे, लेकिन कुछ दिन पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्य सपा को छोड़कर अपनी नई पार्टी का गठन कर लिया है। और पढ़ें