कभी पूरब का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का खूब जलवा रहा है। इस सीट पर कांग्रेस छह बार जीत का परचम लहरहा चुकी है, जबकि 11 बार निर्दलीय उम्मीदवार और भाजपा सहित दूसरी पार्टियों ने जीत दर्ज की है। 1952 चुनाव में कांग्रेस के हरिहरनाथ शास्त्री ने जीत दर्ज की। फिर 1957 से 1971 तक एसएम बनर्जी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते। साल 1977 में भारतीय लोकदल से मनोहर लाल यहां से जीते। 1980 में आरिफ मोहम्मद खान की जीत के साथ कांग्रेस ने यहां पर वापसी की। 1984 में कांगेस के ही नरेश चंद्र चतुर्वेदी जीते। फिर 1989 में सीपीएम से सुभाषनी अली ने कांग्रेस के हाथ से सीट छीन ली। 1991 में पहली बार भाजपा पहली बार यहां जीती और जगतवीर सिंह सांसद बने। 1996 और 1998 में भी बीजेपी यहां से जीतने में कामयाब रही। हालांकि 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने श्रीप्रकाश जायसवाल को उतारकर भाजपा को हरा दिया। जायसवाल लगातार तीन बार 1999, 2004 और 2009 में इस सीट से जीतने के कामयाब रहे। लेकिन साल 2014 में मोदी लहर के आगे वो टिक नहीं सके और मुरली मनोहर जोशी से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। वहीं, 2019 में भी भाजपा के ही सत्यदेव पचौरी सांसद बने। कानपुर में कुल 29,20,000 आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है, जिनमें 15,85,000 पुरुष और 13,35,000 महिलाएं शामिल हैं। अनुसूचित जाति 11.72 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की 0.12 फीसदी आबादी यहां रहती है। इसके अलावा ब्राह्मण, वैश्य और मुस्लिम मतदाता के अलावा पंजाबी वोटर भी निर्णयक भूमिका में हैं।और पढ़ें