फोटो गैलरी

अगला लेख

अगली खबर पढ़ने के लिए यहाँ टैप करें

Hindi News ओपिनियन संपादकीयफिर भटकता कनाडा

फिर भटकता कनाडा

कनाडा में बढ़ते भारत विरोधी अलगाववाद की जितनी निंदा की जाए, कम होगी। भारत सरकार ने उचित ही कनाडा सरकार से कड़ा विरोध दर्ज कराया है। फिर एक बार खून-खराबे को लालायित चंद खालिस्तानी चरमपंथियों ने...

फिर भटकता कनाडा
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानFri, 21 Jun 2024 09:18 PM
ऐप पर पढ़ें

कनाडा में बढ़ते भारत विरोधी अलगाववाद की जितनी निंदा की जाए, कम होगी। भारत सरकार ने उचित ही कनाडा सरकार से कड़ा विरोध दर्ज कराया है। फिर एक बार खून-खराबे को लालायित चंद खालिस्तानी चरमपंथियों ने तथाकथित नागरिक अदालत आयोजित की है और वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास के बाहर प्रधानमंत्री का पुतला जलाया है, तो कतई हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता। भारत ने कनाडाई उच्चायोग को बाकायदे एक राजनयिक नोट जारी करते हुए अलगाववादी तत्वों की ताजा हरकतों पर अपनी गंभीर आपत्ति जताई है। कनाडा में भारत विरोध को जिस तरह से भड़काने की लगातार साजिशें हो रही हैं, उसमें कहीं न कहीं उस देश की मुख्यधारा की राजनीति का हल्कापन जिम्मेदार है, तभी तो घोषित आतंकी निज्जर को वहां की संसद में मौन श्रद्धांजलि दी गई है। यह वही निज्जर है, जिस पर भारत में हत्या का आरोप था, जो मोस्ट वांटेड आतंकियों की सूची में शामिल था। उसकी मौत पर कनाडा में आंसू बहाने वालों की जमात निरंतर उग्र होती जा रही है, तो भारत सरकार को कुछ ज्यादा ही सचेत रहना चाहिए।
अब यह बात कतई छिपी नहीं है कि जस्टिन ट्रूडो की सरकार अलगाववादियों को खूनी खिलवाड़ का मौका दे रही है। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अलगाववाद के प्रति नरमी खुद कनाडा के समाज पर भारी पड़ेगी। अलगाववाद का समर्थक पाकिस्तान आज किस मुकाम पर है, यह हर कोई देख रहा है। बेशक, दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दा कनाडा सरकार द्वारा अपनी धरती पर सक्रिय हिंसक तत्वों को छूट देने का है। दरअसल, कनाडा अपने ही इतिहास को भूल गया है। साल 1985 में 25 जून को मॉ्ट्रिरयल से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट को कनाडाई सिख आतंकियों ने बम विस्फोट से उड़ा दिया था। जमीन से 31,000 फीट ऊपर बम विस्फोट हुआ था, जिसमें 268 कनाडाई, 27 ब्रिटिश व 24 भारतीय मारे गए थे। यह बमबारी आज भी विमानन आतंकवाद के सबसे दर्दनाक दुष्कृत्यों में से एक है। फिर 23 जून दहलीज पर है, पीड़ित परिजन अपनों की शहादत  को हर साल की तरह इस बार भी याद करना चाहते हैं, लेकिन अलगाववादियों को यह चुभ रहा है। विडंबना देखिए, निज्जर को तो संसद में श्रद्धांजलि दी गई, मगर आतंकी हमले के शिकार बेगुनाहों को बाहर कहीं श्रद्धांजलि देने पर आपत्ति हो रही है? ऐसे में, भारत सरकार ने आधिकारिक निंदा का सहारा लेकर दोटूक संदेश दिया है, जो कनाडा के कर्णधारों तक जरूर पहुंचना चाहिए।
यह भी गौर करने की बात है कि कनाडा में ही अच्छी नसीहत देने वाले कम नहीं हैं। भारतीय मूल के कनाडाई सांसद चंद्र आर्य ने साफ शब्दों में कहा है कि आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार विचारधारा अब भी उनके देश में कुछ लोगों के बीच जीवित है। कनाडाई संसद में बोलते हुए आर्य ने उचित ही कहा कि खालिस्तान समर्थकों द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाना यह दर्शाता है कि स्याह ताकतें फिर सक्रिय हो गई हैं। वहां हिंदुओं और उनके आयोजनों को निशाना बनाया जाने लगा है। कनाडा 1980 के दशक में ऐसी ही आग से गुजर चुका है, वहां की सरकार ने जब आतंकवाद का दर्द झेलने के बाद कड़ी कार्रवाई की थी, तब अलगाववादी आग काबू में आई थी, आज फिर वैसी ही जरूरत आन पड़ी है।

अगला लेख पढ़ें